लेखनी प्रतियोगिता -05-Jun-2022
जंग के मैदान में हर कोई बस जीत हासिल करने के लिए उतरता है। चारों तरफ से आग उगलती बंदूकों के बीच कोई यह नहीं सोचता कि सामने जो लड़ रहे हैं उनका भी परिवार होगा जो इनके बिना अनाथ हो जाएगा. वैसे भी इतना सोचने लगें तो फिर भला जंग में जीत कैसे मिलेगी। तभी तो कहते हैं कि सैनिक जंग में जाने से पहले अपनी भावुकता/कोमलता को किसी लिबास की तरह उतार कर घर ही छोड़ जाते हैं. फिर उन्हें ना अपनों का मोह रहता है ना सामने वाले का, याद रहता है तो बस अपने देश के लिए दुश्मनों को मारना या फिर खुद मर जाना.
बात दुश्मनों तक तो ठीक है लेकिन कभी कभी यह जंग आंतरिक सुरक्षा पर भी आधारित होती है। हमारी आज की कहानी भी ऐसे ही कुछ जांबाज देशभक्तों(कुछ काल्पनिक और कुछ सत्य भी) पर आधारित है जिन्होंने आंतरिक सुरक्षा बरकरार रखने की खातिर खुद के प्राणों तक को दांव पर लगा दिया।
मैं करन चौधरी भारतीय फौज में पिता सुमेर सिंह चौधरी के जंग में शहीद होने पर उनके स्थान पर भर्ती हुआ था। बहुत हर्षोल्लास के साथ मैं फौज में शामिल हुआ था कि अपने पिता सुमेर सिंह चौधरी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दूंगा लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
संध्या के समय सीमा पर हम सभी (मैं और मेरे कुछ फौजी दोस्त राघव, रमेश, महेश, सोहम और बलराम और कुछ अन्य जवान)अपने अपने स्थानों पर तैनात थे। हमें सुचना मिली थी कुछ असमाजिक तत्वों ने उस इलाके में हमला करने की योजना बनाई है। लेकिन अब तक चारों तरफ गहन शांति फैली हुई थी। इस लिए निश्चित हो कर आपस में थोड़ी बहुत मजाक मस्ती करते हुए हम सभी खुला आसमान और बहती हुई पवन का आनंद उठा रहे थे। अचानक राघव को अपनी तरफ कुछ दूरी पर स्थित झाड़ियों के पास कुछ हलचल होती दिखाई दी। उन झाड़ियों के पीछे एक सुनसान हवेली थी जो सालों से बंद पड़ी हुई थी। एक फौजी सैनिक होने के नाते ऐसी किसी भी परस्थिति को सामान्य नहीं माना जा सकता था। इस लिए राघव ने तुरंत हम सभी साथियों को इस बारे में बताया। बलराम ने परस्थिति की गंभीरता जानने हेतु हवाई फायरिंग कर दी लेकिन जवाब में कोई ध्वनि उत्पन्न ना होती देख हम सभी ने वहम समझकर अनदेखा कर दिया। (यही हमारी सबसे बड़ी भूल साबित हुई। काश उस समय हमने अच्छी तरह से छानबीन की होती तो आज राघव और सोहम जिंदा होते और मैं इस हालत में यहां ना पड़ा होता।😭) राघव सोहम और मैं रात को खाना खा कर हवेली की तरफ टहलने निकल गए।
"तुम्हारी हुस्न परी दोबारा मिली या नहीं।" मैंने राघव को छेड़ने के लिए पुछा।🤔
"कहां यार, उस रोज़ के बाद से हर रोज़ शाम को उस बस में काफी दिनों तक सफर करता रहा लेकिन वो कहीं नज़र नहीं आई।☹️" राघव ने मायूस हो कर कहा।
सोहम बेचारा हम दोनों की शक्लें देख कर बात समझने की कोशिश कर रहा था। मैं सोहम को बताने के लिए पीछे पलटा ही था कि अचानक गोलियां चलने की आवाज के साथ ही राघव की दर्द भरी आह सुनकर हम दोनों हैरान रह गए। सामने की तरफ देखा तो राघव नीचे जमीन पर गिरा पड़ा था। हमें यह समझना भी मुश्किल था कि गोलियां किस तरफ से चल रही हैं। इतनी में फिर से एक बार गोलियां की आवाज गूंज उठी। इसके साथ ही राघव और सोहम दोनों गंभीर रूप से जख्मी हो चुके थे। मैंने जवाबी फायरिंग में आवाज़ की दिशा में बंदूक से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। राघव जख्मी होते हुए भी चुपचाप रेंगते हुए कैंप की तरफ जाने लगा। मैं और सोहम पूरी हिम्मत के साथ मुकाबला करते रहे। अचानक एक गोली सीधा सोहम के सिर में आ कर लगी और उसने वहीं दम तोड दिया। यह देखकर मैं सोहम की तरफ नम आंखों से देखने लगा। मेरा ध्यान सोहम की तरफ बटा हुआ देख कर उक्त हमलावर गोलियां चलाते हुए बाहर आ गए जो तकरीबन आठ से दस लोग थे। पीठ पीछे रीढ़ की हड्डी में गोली लगने की वजह से मैं नीचे गिर पड़ा। इस से पहले वो लोग मुझ तक पहुंच पाते, मेरे बाकी साथी वहां पहुंच गए और उन्होंने उन सभी हमलावर को मार डाला और मुझे उठा कर तुरंत कैंप में ले गए। अगली सुबह मुझे आर्मी हस्पताल में दाखिल कराया गया। दो दिन बाद मुझे होश आया तो मैं चलने फिरने की ताकत खो चुका था। राघव के बारे में पूछा तो पता चला कि राघव कैंप तक स्थिति की जानकारी देते हुए दम तोड दिया था। और मैं आज भी व्हील चेयर पर निर्भर हो कर रह गया हूं।☹️
Satvinder Singh
06-Jun-2022 02:13 PM
धन्यवाद आप सभी सदस्यों का
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Seema Priyadarshini sahay
06-Jun-2022 11:20 AM
बेहतरीन रचना
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Raziya bano
06-Jun-2022 10:13 AM
Behtareen
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